नई दिल्ली, 01 मार्च । केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बुधवार को कहा कि मातृभाषा में संज्ञानात्मक बोध सर्वाधिक संभव होता है। सशक्त और समृद्ध होते भारत की गति को और अधिक बढ़ाने के लिए मातृभाषा को सशक्त करना भी जरूरी है। वह दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की भारतीय भाषा समिति द्वारा शताब्दी समारोह के अंतर्गत मातृभाषा और राष्ट्र निर्माण विषय पर आयोजित कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्यातिथि के रूप में संबोधित कर रही थीं।
मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के क्रियान्वयन की दिशा में डीयू की अग्रणी भूमिका की सराहना की। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पंचप्रणों का स्मरण करते हुए कहा कि इनमें से एक प्रण अपनी राष्ट्रीय विरासतों पर गर्व करना भी है और हमारी मातृभाषाएं इन्हीं विरासतों में एक हैं। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में शिक्षा मंत्रालय अपने स्वयं पोर्टल के माध्यम से भारतीय भाषाओं में उच्च कोटि की ज्ञान-विज्ञान की सामग्री उपलब्ध करा रहा है। इस क्रम में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रमों की प्रशंसा करते हुए इसे अन्य विश्वविद्यालयों के लिए रोल मॉडल बताया।
समारोह के दौरान शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने बतौर विशिष्ट अतिथि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इतिहास पर बात करते हुए वैज्ञानिक शोधों के आधार पर भारतीय भाषाओं की महत्ता की बात की। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान को रेखांकित करते हुए धीरे-धीरे भारतीय भाषाओं को ज्ञान का माध्यम बनाने की अनुशंसा भी की। उन्होंने शिक्षा जगत के विद्वानों से आह्वान किया कि अपने विषयों की कम से कम एक पुस्तक मातृभाषाओं में तैयार करें। कोठारी ने राष्ट्र निर्माण और प्रगति के लिए मातृभाषाओं को आवश्यक बताया।
आयोजन की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि मातृभाषाएं बड़ी संवेदनशीलता का विषय हैं। उन्होंने भाषाओं को संस्कृति की वाहिका बताते हुए दुनिया भर में उपज रहे भाषाई संकट की बात की। कुलपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में भारतीय भाषाओं का अध्ययन और भारतीय भाषाओं में अध्ययन की दिशा में विचार करने और इसके क्रियान्वयन की राह प्रशस्त करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने भारतीय भाषाओं की समृद्धि के लिए उसमें अन्य भाषाओं के शब्दों के समावेश की बात कही और भाषाओं को ताकतवर बनाने के लिए देश को ताकतवर बनाने का आह्वान किया।
इस अवसर पर भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता, योजना प्रो. निरंजन कुमार ने कहा कि भारतीय भाषाओं का भी अमृतकाल आ चुका है। उन्होंने कहा कि हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन काल से ही अग्रणी रहा है और उसकी वाहिका भारतीय भाषाएं ही रही हैं। प्रो. निरंजन कुमार ने आज़ादी के सौवें वर्ष तक भारतीय भाषाओं की उत्कर्षता की बात की।
कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर बलराम पाणि, अधिष्ठाता, महाविद्यालय, प्रोफ़ेसर प्रकाश सिंह, निदेशक, दक्षिण परिसर, प्रोफ़ेसर नीरा अग्निमित्रा, संयोजक, शताब्दी समारोह समिति एवं विश्वविद्यालय परिवार के डीन, प्राध्यापक, प्राचार्य, अधिकारी, कर्मचारी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।