जमीयत उलेमा-ए-हिंद का 34वां महाधिवेशन रामलीला मैदान में शुरू

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का 34वां महाधिवेशन रामलीला मैदान में शुरू

- इस्लामोफोबिया, पैगंबर के अपमान, मतदाताओं की मतदान के प्रति घटती रुचि और पर्यावरण संरक्षण जैसे प्रस्ताव पारित

नई दिल्ली, 10 फरवरी । जमीयत उलेमा-ए-हिंद का 34 वां तीन दिवसीय महाधिवेशन दिल्ली के रामलीला मैदान में ध्वजारोहण की रस्म के साथ शुरू हुआ। जमीयत अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में शुरू हुए इस अधिवेशन का पूर्ण सत्र 12 फरवरी को आयोजित किया जाएगा। इसमें हजारों की संख्या में लोगों के भाग लेने की उम्मीद है।

महाधिवेशन के पहले दिन आज जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव ने सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस अवसर पर कई प्रस्ताव पारित हुए जिनमें इस्लामोफोबिया, पैगंबर के अपमान, मतदाताओं की मतदान के प्रति घटती रुचि और पर्यावरण संरक्षण मुख्य रूप से शामिल हैं।

देश में बढ़ते नफरती अभियान और इस्लामोफोबिया की रोकथाम पर भी सम्मेलन में प्रस्ताव पेश किया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि हमारे देश में इस्लामोफोबिया और मुसलमानों के प्रति नफरत और उकसावे की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यह सब सरकार की आंखों के सामने हो रहा है। यहां तक कि सरकार में शामिल कई भाजपा नेता भी अपने भाषणों के माध्यम से इस तरह की नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। इस महाधिवेशन के माध्यम इस तरह मामलों पर अंकुश लगाने की जरूरत पर बल दिया गया है। इसके साथ ही मीडिया के इस्लाम विरोधी रवैये और पैगंबर हजरत मोहम्मद के अपमान पर अंकुश लगाने के उपाय पर भी सम्मेलन में चर्चा की गई।

चुनाव में मतदाता पंजीकरण और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी उपायों को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया गया। चुनाव में मतदाताओं की चुनाव के प्रति उदासीनता और घटते मत प्रतिशत पर चिंता व्यक्त की गई। प्रस्ताव में कहा गया है कि लोकतांत्रिक समाज में वोट की ताकत को पहचानना जरूरी है। ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं कि केवल एक मत के इधर-उधर होने पर सरकार बनती है और एक सरकार चली जाती है। हमें एक वोट की कीमत को समझना चाहिए। केवल एक वोट पूरी चुनावी प्रक्रिया के संतुलन को बनाने और बिगाड़ने में अहम रोल अदा करता है। हमारे समाज में अपने वोट के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही है। नए मतदाताओं को अपना पंजीकरण करना चाहिए और मतदान के लिए मतदान केंद्रों पर जाना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण पर भी एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें कहा गया है कि इस्लामी दृष्टिकोण से साफ-सफाई आधा ईमान है। इसमें कहा गया कि पर्यावरण असंतुलन और जलवायु परिवर्तन और संतुलित विकास के कारण वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों की जीने के अधिकार के लिए गंभीर संकट है। इसके मद्देनजर जमीयत उलेमा हिंद का यह महा अधिवेशन देश के जागरूक नागरिकों का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की तरफ आकृष्ट कराना चाहता है।

वक्फ संपत्तियों के संरक्षण के उपाय और इस्लामी शिक्षाओं के संबंध में गलतफहमी को दूर करने और धर्म त्याग की गतिविधियों पर रोक लगाने संबंधी प्रस्ताव भी पेश किए गए।