मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की डबल इंजन सरकार के दिवालियापन का परिचायक है और यह कदम सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर आंतरिक टकराव को सुलझाने के मकसद से उठाया गया है। वामपंथी दल ने यह भी कहा कि मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लिया जाना चाहिए।
सीपीएम पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना बीजेपी की डबल इंजन सरकार के पूर्ण दिवालियापन को रेखांकित करता है, जिसके शासन में राज्य दो साल से हिंसक उथल-पुथल में है। पार्टी ने आरोप लगाया, राष्ट्रपति शासन मणिपुर के हित में नहीं है। यह इसलिए लगाया गया है ताकि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर आंतरिक विवादों को निपटाने के लिए कुछ समय मिल सके।
वहीं कांग्रेस की मणिपुर इकाई के अध्यक्ष केशम मेघचंद्र ने भी शुक्रवार को दावा किया कि बीजेपी के भीतर नेतृत्व संकट और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर आम सहमति न बन पाने के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। मेघचंद्र ने कहा कि बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने हिंसाग्रस्त राज्य की जमीनी स्थिति को आखिरकार समझना शुरू कर दिया है।
मेघचंद्र ने इंफाल में कहा, मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद नेतृत्व संकट और बीजेपी के भीतर (नए मुख्यमंत्री के चयन पर) मतभेद के कारण राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। अब पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर है... उम्मीद है कि (प्रधानमंत्री नरेन्द्र) मोदी अब सरकार की कार्य के प्रति निष्क्रियता पर गौर करेंगे और राज्य में संकट का समाधान करना शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि मणिपुर की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता की रक्षा का दायित्व केंद्र सरकार पर है।
एन. बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के चार दिन बाद केंद्र सरकार ने गुरुवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसके साथ ही विधानसभा को भी निलंबित कर दिया गया है। मणिपुर पिछले करीब दो साल से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। हिंसा में कई लोग मारे गए और हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। हिंसा के दो साल बाद भी पीएम मोदी ने राज्य का दौरा नहीं किया है और सामान्य स्थिति नहीं बहाल हो पाई है।