बलिया, 18 फरवरी। देवाधिदेव भगवान शिव सम्पूर्ण प्रकृति के रक्षक हैं। माता पार्वती भी एक अंश में प्रकृति ही हैं और शक्ति भी प्रकृति ही है। बिना शक्ति के एवं बिना प्रकृति के शिव रह नहीं सकते। इस तरह बिना शक्ति एवं प्रकृति के शिव स्वयं में अधूरे हैं। यही कारण है कि शिव को सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम है और प्रकृति से प्रेम होने के कारण वो प्रकृति की हर तरह से रक्षा भी करते हैं।
पर्यावरणविद डा. गणेश पाठक कहते हैं कि भगवान शिव के अनेक रूप हैं। एक तरफ जहां वे सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् के प्रतीक हैं, वहीं दूसरी तरफ औघड़दानी के रूप में अपने लोक कल्याणकारी स्वरूप में लोक की रक्षा भी करते हैं।
जैवविविधता के रक्षक हैं शिव
प्रकृति रक्षक के रूप में भगवान शिव पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता अर्थात् सम्पूर्ण प्रकृति के भी रक्षक एवं पोषक हैं। भौतिक शास्त्री गणेश पाठक बताते हैं कि चूंकि शिव भगवान हैं और भगवान शब्द पांच शब्दों भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि एवं न से नीर से मिल कर बना है। अर्थात् प्रकृति के पांच तत्वों क्षिति, जल, पावक, गगन व समीर का स्वरूप ही भगवान हैं। भगवान शिव प्रकृति के इन मूल पांच तत्वों की रक्षा करते हैं और हम जगतवासी भी इन मूल पांच तत्वों के रूप में ही भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस दृष्टि से भगवान शिव प्रकृति के रक्षक एवं पोषक हैं। भगवान शिव का तप स्थान कैलाश पर्वत है। इन पर्वतों पर ही प्रकृति के सभी तत्व अर्थात् पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता के सभी तत्वों की बहुलता है। यही कारण है कि पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए ही भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं।
भगवान शिव प्रकृति के ऐसे तत्वों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से तत्पर रहतें हैं। जिनको मानव विष समझकर या हिंसक जीव-जंतु समझकर विनाश करने के लिए तत्पर रहता है। भगवान शिव ने ऐसे सभी विषधर जीव-जंतुओं एवं विषैले पौधों को अपना प्रिय मानते हुए उसे आत्मसात कर लिया। अपना प्रिय बना लिया। जब ये विषैले जीव-जंतु जैसे साँप, बिच्छू, गोजर आदि एवं विषैले पौधों जैसे-धतूरा, आक एवं भांग-गांजा को मानव भगवान शंकर की प्रिय वस्तु समझकर इनसे उनकी पूजा करने लगा। समाज में व्याप्त सभी प्रकार के विष को भगवान शिव ने आत्मसात कर लिया। यहां तक कि समुद्र मंथन से निकले हुए अति घातक विष, जिनसे सृष्टि का विनाश हो सकता था, उसका भी विश्व कल्याण हेतु स्वयं पान कर लिया। भगवान शिव द्वारा विषपान करना जगत की सम्पूर्ण बुराईयों को समाप्त करने का भी प्रतीक है। जिससे मानव का कल्याण हो।
शिव से मिलता है जल संरक्षण का संदेश
मोक्षदायिनी एवं जीवनप्रदायिनी मां गंगा को भी अपनी जटाओं में धारण कर जल संरक्षण का संदेश जन-जन तक फैलाया। यही नहीं भगवान शिव को बूंद-बूंद जल चढ़ाना प्रिय है। यह भी सम्भवतः जल संरक्षण का प्रतीक है। ताकि बूंद-बूंद जल चढ़ाने से जल की बर्बादी न हो।
इस प्रकार प्रकृति के सम्पूर्ण तत्वों के संरक्षण हेतु ही भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर रहना पसंद किया और एक कल्याणकारी देवता के रूप में भगवान शिव न केवल मानव जगत का कल्याण करते हैं, बल्कि पशु जगत, जीव जंतु जगत एवं पादप जगत को संरक्षण प्रदान कर सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा करते हैं। यही नहीं भगवान शिव चल एवं अचल तथा जैविक एवं अजैविक जितने भी प्रकृति के कारक हैं। सबकी रक्षा किसी न किसी रूपमें करते हैं।