सिमरिया कल्पवास मेला के खालसा में अन्नकूट पर लगाए गए 56 प्रकार के भोग

सिमरिया कल्पवास मेला के खालसा में अन्नकूट पर लगाए गए 56 प्रकार के भोग

बेगूसराय, 14 नवम्बर । देश के एकलौते कार्तिक कल्पवास स्थल स्थित सिमरिया गंगा धाम (बेगूसराय) में हर ओर ना केवल अध्यात्म और भक्ति की पावन धारा बह रही है। बल्कि यहां सनातन से जुड़े हर विधि विधान परंपरा के अनुसार खालसा में बनाए जा रहे हैं। इस कड़ी में मंगलवार को अन्नकूट मनाया गया, जिसमें इष्ट देव को 56 प्रकार के भोग लगाए गए।

श्रीराम जानकी जीव सेवा धाम खालसा में अन्नकूट के अवसर पर विस्तृत कार्यक्रम आयोजित किए गए। कल्पवास में चल रही दैनिक परंपरा के अनुसार गंगा स्नान और ध्यान के बाद खालसा प्रमुख डॉ. जानकी बल्लभ दास वेदांती के नेतृत्व में अन्नकूट मनाया गया। जिसमें प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण सहित सभी देवी-देवताओं को 56 प्रकार के विशेष भोग लगाए गए।

मौके पर डॉ. जानकी बल्लभ दास वेदांती ने कहा कि अन्नकूट मतलब अन्न के पहाड़ों से प्रभु को भोग लगाना। आज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत पर पूजा किया था। श्रीराम जब लंका विजय कर अयोध्या आए तो दीपोत्सव समाप्त होते ही अयोध्या वासियों ने अन्नकूट का भोग लगाया था। जिसमें 56 प्रकार के 36 व्यंजन थे। इस परंपरा को आगे बढ़ते हुए हम सनातन धर्म अवलंबी अन्नकूट मानते हैं।

हम सिमरिया में कल्पवास करते हैं तो यहीं वर्ष 1995 से अन्नकूट मनाते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष के सबसे उत्तम माह कार्तिक में पौराणिक काल से सिमरिया में कल्पवास लगता आ रहा है। जहां सिर्फ हम मिथिला और बिहारवासी ही नहीं, देश के विभिन्न राज्यों से आकर साधु-संत और श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। गंगा जी के एक बूंद से व्यक्ति पवित्र हो जाता है, यहां तो पूरी गंगा माता हैं।

सुदूरवर्ती इलाके में मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार कर उसका भस्म गंगा में प्रवाहित किया जाता है। लेकिन हम सब सौभाग्यशाली हैं कि सिमरिया के इस मोक्षदायिनी भूमि में आकर कल्पवास कर रहे हैं। पता नहीं फिर यहां आने का मौका मिले या नहीं। जब एक बूंद से व्यक्ति का कल्याण हो जाता है तो यहां मौजूद पूरी की पूरी मां गंगा उद्धार ही करती हैं। इसलिए उत्तम माह कार्तिक में गंगा स्नान कर श्मशान भूमि में निवास करते हैं।

अब यहां की व्यवस्था पर सरकार की नजर गई है। भगवान ने सरकार को सद्बुद्धि दी है तो इस वर्ष अच्छी व्यवस्था है। बीएचयू से पीएचडी करने वाले डॉ. जानकी बल्लभ दास वेदांती ने कहा कि कल्पवास के समय हमारी दिनचर्या सुबह तीन बजे बिछावन छोड़ने के साथ शुरू होती है। स्नान और ध्यान के बाद प्रातः काल में रामचरितमानस का पाठ, आरती, अतिथि सत्कार के बाद आठ बजे बालभोग होता है।

उसके बाद फिर से रामचरितमानस का पाठ शुरू हो जाता है। दोपहर 12 से तीन बजे तक श्रीमद् भागवत कथा एवं कार्तिक महात्म्य होती है। शाम में छह से आठ बजे भजन संध्या एवं आरती के बाद शयन होता है। खालसा में उपस्थित करीब दो सौ श्रद्धालु भगवत भक्ति में लीन हैं। उन्होंने कहा कि बचपन से ही साधु संगत में जीवन व्यतीत करना उद्देश्य था। पांच भाइयों में सबसे छोटे रहने के कारण पिता चाहते थे कि साधु संगत में जीवन बीते।

शास्त्री के बाद वेद विद्यालय अयोध्या से स्नातकोत्तर तथा बीएचयू से पीएचडी की उपाधि ली। सात अगस्त 2014 को आरडीएन कॉलेज सुपौल में प्राध्यापक के पद पर योगदान किया। लेकिन पिताजी इस मोह में फंसने से असंतुष्ट थे। जिसके कारण सात अप्रैल 2018 को नौकरी से इस्तीफा देकर श्रीराम जानकी जीव सेवा धाम के राम जानकी मंदिर उड़ीवन, लौकही (मधुबनी) में भगवत भक्ति में लीन हो गए। अंतिम प्राण तक यहां मां गंगा की गोद में कल्पवास करते रहेंगे।