देश की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले गोंड शासकों को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे

देश की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले गोंड शासकों को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे

जबलपुर, 17 सितंबर । राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ऐसे गोंड शासक थे, जिन्होंने देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करते हुये अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, लेकिन अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया। खेद का विषय है कि उन जैसे गोंडशासकों और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को इतिहासकारों ने किताबों में वह स्थान नहीं दिया, जिसके कि वे हकदार थे।

.यह विचार मुख्यमंत्री कार्यालय के अतिरिक्त सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम ने रविवार देर शाम यहां रानी दुर्गावती सेवा स्मृति न्यास द्वारा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक और गोंडवाना साम्राज्य के अंतिम शासक राजा शंकर शाह एवं उनके सुपुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित हुतात्मा व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। पद्मश्री से संम्मानित अर्जुन सिंह धुर्वे के मुख्य अतिथ्य में आयोजित इस व्याख्यानमाला के विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रदीप दुबे थे। व्याख्यान माला की अध्यक्षता आयोजन समिति के अध्यक्ष आसाडूलाल उइके ने की।

अपने सारगर्भित व्याख्यान में लक्ष्मण सिंह मरकाम ने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के आजादी में योगदान और बलिदान को समझने के लिये भारत के इतिहास की व्यापक पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 के पहले सन् 1842 और 1818 में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हुये थे। लेकिन इसे भी इतिहास लेखन में स्थान नहीं दिया गया। उन्होनें गोंडवाना साम्राज्य के वैभव और विस्तार का उल्लेख करते हुये कहा कि आज के सात-आठ राज्यों के बराबर गोंडवाना साम्राज्य की सीमायें फैली हुई थी। पूरा समाज संगठित था। गोंडवाना साम्राज्य में सभी वर्ग के लोग परम वैभव के साथ रहा करते थे। शासक अपनी प्रजा का परिवार के सदस्य की तरह देखभाल किया करते थे। लेकिन अंग्रेजो ने षड़यंत्रपूर्वक इस संगठित साम्राज्य को उसकी परंपराओं को नष्ट कर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दिया।

मरकाम ने गोंडशासक राजा संग्राम शाह की वीरगाथाओं का उल्लेख भी अपने व्याख्यान में किया। उन्होनें कहा कि इतिहास में दर्ज है कि राजा संग्राम शाह ने 100 युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारा। इसीलिये उन्हें संग्राम शाही की उपाधि दी गई थी। उन्होनें कहा कि आज राजा संग्राम शाह के समकालीन इब्राहिम लोधी तो लोगों को याद है। लेकिन संग्रामशाह को इतिहास से गायब कर दिया गया। मरकाम ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की आजादी के अमृत काल में आजादी के उन गुमनाम नायकों का स्मरण करने और उनके बलिदानों को याद करने का बीड़ा उठाया है, जिनके योगदान को इतिहासकारों द्वारा किताबों में दबा दिया गया है।

मरकाम ने इस मौके पर कहा कि राजा शंकर शाह और उनके सुपुत्र कुँवर रघुनाथ शाह को 1857 के विद्रोह का नेतृत्व करने पर अंग्रेजो द्वारा तोप से उड़ाने को दी गई सजा के पूर्व उन्हें धर्म बदलने की और माफी मांगने के लिये कड़ी प्रताड़ना दी गई थी। लेकिन उन्होंने वीरता का परिचय देते हुये मृत्यु की सजा को स्वीकार किया। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह मॉं काली के परम उपासक और नर्मदा भक्त थे। उन्होंने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को दी गई फॉंसी की सजा को अंग्रेजों ने विद्रोह की अशंका को देखते हुये तोप से उड़ाने की सजा में तबदील कर दिया था।

मरकाम ने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को अंग्रेजों द्वारा तोप से उड़ा दिये जाने की जानकारी लगने पर पूरे गोंडवाना साम्राज्य में डेढ माह तक विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी थी। इसका भी इतिहासकारों ने कहीं जिक्र नहीं किया। उन्होंने कहा कि अब वह समय आ गया है जबकि हम स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम नायकों को देश के सामने लेकर आएं, ताकि युवा पीढी भी उनके बलिदानों से प्रेरणा लें और देश के वैभव, संस्कृति, परंपरा को पुनर्स्थापित करने में योगदान दें।

इस अवसर पर प्रदीप दुबे ने गोंड राजाओं के प्रजा और प्रकृति प्रेम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान ने प्रदेश के जनमानस को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जागृत किया था। गोंड राजा अपनी प्रजा का पालन पोषण संतान के रूप में करते थे। साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी ख्याल रखते थे। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से गायब गोंड साम्राज्य के वृहद इतिहास को देश का दुर्भाग्य बताते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में चमड़े की मुद्राओं से शासन करने वाले शाहों बादशाहों का इतिहास पढ़ाया जाता है जबकि स्वर्ण मुद्राएं प्रचलित कर वैभवशाली साम्राज्य को परिभाषित करने वाले गोंड साम्राज्य राजाओं की अवहेलना की जाती है। जो आगामी पीढ़ी के लिए अच्छा नहीं है। व्याख्यान माला को मुख्य अतिथि पद्मश्री से सम्मानित अर्जुन सिंह धुर्वे ने भी संबोधित किया।

व्याख्यान माला का शुभांरभ दीप प्रज्जवलन कर किया गया तथा अतिथियों का स्वागत तिलक लगाकर तथा शासक श्रीफल भेंटकर किया गया। व्याख्यान माला का समापन राष्ट्रगीत वंदे भारत का गायन हुआ।