भक्त कभी भी परिस्थितियों का गुलाम नहीं होता : आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी महाराज

भक्त कभी भी परिस्थितियों का गुलाम नहीं होता : आचार्य राधेश्याम शास्त्री जी महाराज

नवादा, 31 जनवरी। श्री हरिहर महायज्ञ के पांचवे दिन मंगलवार को श्री मद् भागवत कथा को रहस्यमयी और रोचक बनाते हुए कथावाचक आचार्य राधेश्याम शास्त्री ने कहा कि प्रह्वादश्चास्मि दैत्यानाम् / विभूति योग का वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण श्रीमद् भगवद् गीता में कहते हैं कि मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूं । प्रह्लाद जन्मे तो दैत्यों के घर में लेकिन घर में जन्मने से कुछ भी नहीं होता। घर बंधन नहीं है।

प्रह्लाद दैत्य वंश में जन्मते हैं और परम भक्ति को उपलब्ध हो जाते हैं। जो पवित्र घरों में जो जन्मे हैं, वे भी इतनी बड़ी भक्ति को उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। बेन, कंस, शिशुपाल, दुर्योधन, ये सब तो पवित्र वंश मे ही जन्मे थे। वे कहते हैं कि परिस्थिति कितनी ही बदलो आदमी नहीं बदलेगा । लेकिन आदमी को बदलो तो परिस्थिति बदल जाती है । परिस्थिति जड़ है , मनुष्य चैतन्य है और मनुष्य ही मालिक है । इन संदर्भो को आचार्य ने कई आख्यान उपाख्यान और कथा प्रसंगों के माध्यम से समझाया ।

संगीतमय वातावरण में कथावाचक के कण्ठ से जहां संगीत प्रवाहित हो रही थी वहीँ काव्य के विभिन्न रसों से श्रोता मंत्रमुग्ध हो रहे थे । बीच-बीच में हास्य रस , वात्सल्य रस और श्रृंगार रस से पूरा कथा पांडाल गूंज रहा था । उन्होंने गोवर्धन मंदिर को माननीय पूर्व मंत्री राजबल्लभ प्रसाद के आध्यात्मिक चिंतन का सबसे बड़ा उपहार बताया।

गोवर्धन मंदिर में चल रहे नौ दिवसीय श्री हरिहर महायज्ञ के पांचवे दिन मंगलवार को यज्ञमंडप में दैनिक अनुष्ठान के अलावे हरिहर मंडल का विशेष आह्वान कर मन्त्रों का विधिवत जाप किया गया । सभी ग्यारह जोड़ी जजमानों ने मन्त्रों का जाप करते हुए हवन कुण्ड में आहुतियां समर्पित की ।