पटना, 13 जनवरी । प्रखर समाजवादी वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने जन्म तो मध्य प्रदेश में लिया लेकिन बिहार उनकी कर्मभूमि रही। उन्हें बिहार की राजनीति का भीष्म पितामह भी कहा जाता है। ये शरद यादव की स्वीकार्यता ही थी कि मध्य प्रदेश के होने के बावजूद भी उन्होंने बिहार में लालू और नीतीश दोनों को ना केवल मुख्यमंत्री बनाया, बल्कि जब लालू यादव की लोकप्रियता शिखर पर थी तब उन्हें सियासी पटखनी दी थी। वो साल 1999 का था।
इसके बाद शरद यादव का कद बिहार में बढ़ता चला गया। मधेपुरा से शरद यादव चार बार सांसद चुने गए।जिस मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से शरद यादव ने लालू यादव जैसे दिग्गज को हराया उसी सीट से इन्हें पप्पू यादव जैसे युवा नेता से हार का भी मुंह देखना पड़ा। साल 2014 में जब देश में नरेन्द मोदी की लहर थी तो जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में शरद यादव मधेपुरा से मैदान में थे। उनके सामने राजद से युवा चेहरा पप्पू यादव थे। इस चुनाव में पप्पू यादव ने उन्हें पटखनी दे दी। मधेपुरा से अपना आखिरी लोकसभा चुनाव शरद यादव ने राजद के टिकट से लड़ा। इस आखिरी लोकसभा चुनाव में उन्हें जदयू के ही नेता दिनेश चंद्र यादव से हार का मुंह देखना पड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार के मुताबिक, लालू प्रसाद यादव को सीएम बनाने में शरद यादव की सबसे बड़ी भूमिका रही। 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर चुकी थी। बिहार में नई सरकार का गठन होना था। रामसुंदर दास रेस में सबसे आगे चल रहे थे। रघुनाथ झा भी मैदान में थे। ऐसे में केंद्रीय टीम में शामिल शरद यादव ने लालू यादव के नाम पर सहमति जुटाई और लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी तरह 2005 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के संयोजक रूप में गठबंधन से लेकर सीट बंटवारे तक और चुनावी कूटनीति से एनडीए को जीत दिलाने में शरद यादव की अग्रणी भूमिका रही। इसी जीत के बाद नीतीश कुमार के सिर सीएम का ताज सजा।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन का कहना है कि 2003 में जॉर्ज फर्नांडिस की अगुआई वाली समता पार्टी का शरद यादव की अगुआई वाल जदयू में विलय हुआ। शरद पार्टी में सबसे कद्दावर नेता के रूप में चुने गए। 2005 में इनकी पार्टी सत्ता में आई। इसके बाद इनका कद बढ़ते चला गया लेकिन 2015 आते-आते नीतीश कुमार और शरद यादव में दूरियां बढ़ने लगी। हालात ऐसे बन गए कि शरद यादव का नीतीश और उस जदयू का दामन छूट गया, जिसे उन्होंने खड़ा किया था।
2018 में उन्होंने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया लेकिन सफल नहीं रहे। 2019 में वे लौटकर राजद में आए। मधेपुरा से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद से वे लगातार बीमार रहने लगे थे। राजीव रंजन ने कहा कि शरद यादव आखिरी बार 21 सितंबर, 2022 को बिहार लौटे थे। तब वे लगभग तीन साल बाद पटना आए थे। यहां उन्होंने बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव व अन्य नेताओं से मुलाकात की थी।
उल्लेखनीय है कि शरद यादव का गुरुवार की देर शाम गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया।
शरद यादव का सियासी सफरनामा
1974 पांचवीं लोकसभा उप-चुनाव में सर्वदलीय समर्थन से चुने गए। इमरजेंसी लागू होने पर इस्तीफा दे दिया।
1977- छठी लोकसभा (द्वितीय कार्यकाल) में जनता पार्टी से निर्वाचित हुए।
1978 - महासचिव- लोक दल, अध्यक्ष-युवा लोक दल चुने गए।
1986- राज्यसभा के लिए चुने गए 1989- नौवीं लोकसभा (तीसरी अवधि) में चुने गए गए।
1989-97 महासचिव-जनता दल, जनता दल संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने।
1989-90 केंद्रीय कैबिनेट मंत्री- कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग।
1991 - 10वीं लोकसभा (चौथी अवधि) के लिए फिर निर्वाचित, लोक लेखा समिति के सदस्य रहे।
1993 - नेता, जनता दल संसदीय पार्टी बने।
1995 - कार्यकारी अध्यक्ष, जनता दल बने।
1996 - 11वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित, वित्त समिति के अध्यक्ष बने।
1997 - जनता दल के अध्यक्ष बने।
1999 - 13वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित, लालू प्रसाद को हराया।
13 अक्टूबर 1999 - 31 अगस्त, 2001, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (नागरिक उड्डयन) बने।
01 सितम्बर, 2001 - 30 जून, 2002 केंद्रीय कैबिनेट में श्रम मंत्री रहे।
01 जुलाई 2002 - 15 मई, 2004 केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (उपभोक्ता मामले मंत्री, खाद्य और सार्वजनिक वितरण)।
2004 - राज्यसभा के लिए फिर निर्वाचित (द्वितीय कार्यकाल), व्यापार सलाहकार समिति, जल संसाधन समिति, सामान्य प्रयोजन समिति, सलाहकार समिति, गृह मंत्रालय के सदस्य रहे।
2009 -15वीं लोकसभा (सातवीं बार) के लिए निर्वाचित 31 अगस्त, 2009- शहरी विकास समिति के अध्यक्ष रहे।
2014- राज्य सभा के लिए फिर निर्वाचित (तीसरी अवधि)।
2018- लोकतांत्रिक जनता दल का गठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष 2019 - राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हुए और मधेपुरा से लोकसभा का चुनाव में प्रत्याशी बने।
2022- लोकतांत्रिक जनता दल का विधिवत विलय राजद में हुआ।